दुनियाभर में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) और हाई-टेक डिवाइसेज़ की मांग बढ़ने के साथ, रेयर अर्थ मेटल्स की अहमियत भी तेजी से बढ़ी है। इसी बीच चीन द्वारा रेयर अर्थ की सप्लाई को रोकने के फैसले से यूरोप की ऑटो इंडस्ट्री में बड़ा संकट खड़ा हो गया है। कई कंपनियों को मजबूरन अपने प्लांट बंद करने पड़े हैं।
🚧 क्या है मामला?
चीन, दुनिया का सबसे बड़ा रेयर अर्थ निर्यातक है। इन धातुओं का उपयोग इलेक्ट्रिक मोटर, बैटरी, चिप्स और अन्य हाई-टेक उत्पादों में होता है।
हाल ही में चीन ने स्ट्रेटजिक कारणों से यूरोप के लिए रेयर अर्थ की सप्लाई पर रोक लगा दी है। इसके चलते कई यूरोपीय ऑटो पार्ट्स सप्लायर्स को अपने प्रोडक्शन प्लांट्स बंद करने पड़े हैं।
🛠️ रेयर अर्थ मेटल्स का महत्त्व:
रेयर अर्थ मेटल्स (जैसे – नियोडियम, प्रासेओडियम, डिसप्रोसियम) का उपयोग विशेष रूप से इन क्षेत्रों में होता है:
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इलेक्ट्रिक व्हीकल मोटर्स
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विंड टरबाइन्स
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मोबाइल फोन और लैपटॉप
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सैटेलाइट और रक्षा उपकरण
चीन की हिस्सेदारी वैश्विक रेयर अर्थ सप्लाई में लगभग 60-70% है।
⚠️ यूरोप पर क्या पड़ा असर?
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जर्मनी, फ्रांस और चेक रिपब्लिक जैसे देशों की कंपनियों को सबसे बड़ा झटका।
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EVs और ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट्स की रफ्तार धीमी पड़ी।
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सप्लाई चेन में देरी और लागत में जबरदस्त बढ़ोतरी।
यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ ऑटोमोबाइल सप्लायर्स (CLEPA) के अनुसार,
“यदि स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो हजारों नौकरियां और अरबों यूरो का उत्पादन प्रभावित होगा।”
🔍 चीन की रणनीति के पीछे कारण:
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भू-राजनीतिक दबाव: अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की नीतियों पर प्रतिक्रिया।
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टेक्नोलॉजी कंट्रोल: हाई-टेक क्षेत्र में बढ़त बनाए रखना।
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आंतरिक संरक्षण: घरेलू संसाधनों की रक्षा और पर्यावरणीय नियम।
🇮🇳 भारत के लिए क्या सबक हैं?
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रेयर अर्थ का वैकल्पिक स्रोत बनना
भारत में भी रेयर अर्थ की उपस्थिति है, लेकिन प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग टेक्नोलॉजी में निवेश की कमी है। -
सप्लाई चेन विविधता
भारत को जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ानी होगी ताकि चीन पर निर्भरता कम हो सके। -
मेक इन इंडिया को बढ़ावा
EV सेक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में स्वदेशी सप्लाई चेन का विकास ज़रूरी है।
🔚 निष्कर्ष:
रेयर अर्थ मेटल्स जैसे क्रिटिकल मटेरियल्स की सप्लाई पर चीन का नियंत्रण वैश्विक उद्योगों के लिए चुनौती बन चुका है। यूरोप इसका ताजा उदाहरण है। भारत जैसे देशों को इस संकट से सीख लेकर अपनी खनिज रणनीति, टेक्नोलॉजी और ग्लोबल साझेदारियों पर ध्यान देना होगा, ताकि भविष्य में सप्लाई चेन झटकों से बचा जा सके।