बिहार चुनाव 2025 से पहले नीतीश कुमार का ‘नया जातीय गणित’: सवर्ण, मुस्लिम और आदिवासी समुदायों को साधने की तैयारी
बिहार में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज़ हो चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपने पुराने ‘सामाजिक इंजीनियरिंग’ के मॉडल को अपनाते हुए वोट बैंक को संतुलित करने की रणनीति शुरू कर दी है। उन्होंने हाल ही में तीन महत्वपूर्ण आयोगों – सवर्ण आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, और आदिवासी आयोग – में नई नियुक्तियाँ कर सियासी संकेत दिए हैं कि बिहार चुनाव 2025 से पहले जातीय समीकरणों को पुनः संजोने की कोशिश की जा रही है।
✅ अल्पसंख्यक आयोग: मुस्लिम वोट बैंक की फिर से साधना
नीतीश कुमार ने पूर्व राज्यसभा सांसद और जदयू नेता गुलाम रसूल बलियावी को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया है। बलियावी ने हाल ही में संसद में पारित वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध किया था, जो मुस्लिम समुदाय में चिंता का कारण बना है। उनकी नियुक्ति एक स्पष्ट संकेत है कि जदयू मुस्लिम मतदाताओं में अपनी पकड़ फिर से मजबूत करना चाहता है, विशेषकर तब जब राजद इस समुदाय में प्रभावशाली बना हुआ है।
✅ सवर्ण आयोग: भाजपा से जुड़े चेहरों को दी ज़िम्मेदारी
तीन साल से निष्क्रिय सवर्ण आयोग को पुनः सक्रिय करते हुए नीतीश कुमार ने भाजपा नेता महाचंद्र प्रसाद को अध्यक्ष और जदयू नेता राजीव रंजन को उपाध्यक्ष नियुक्त किया है।
इस कदम के दो राजनीतिक निहितार्थ हैं:
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नीतीश कुमार ने संकेत दिया कि वे भाजपा और जदयू कार्यकर्ताओं को एक मंच पर साथ लाकर सवर्ण मतदाताओं को आकर्षित करना चाहते हैं।
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भाजपा के पारंपरिक वोटरों – ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ – को महागठबंधन में लाने की कोशिश की जा रही है।
सवर्ण मतदाता लंबे समय से जदयू से दूरी बनाए हुए थे। अब उनके लिए आयोग को फिर से सक्रिय कर एक सॉफ्ट अप्रोच दिखाई जा रही है।
✅ आदिवासी आयोग: सीमांत समुदायों पर ध्यान
आदिवासी आयोग के अध्यक्ष के रूप में भाजपा के शैलेन्द्र कुमार की नियुक्ति हुई है। बिहार में आदिवासी जनसंख्या बहुत अधिक नहीं है, लेकिन सीमांचल और झारखंड सीमा से लगे जिलों में उनका राजनीतिक प्रभाव है। यह नियुक्ति भाजपा और जदयू के गठबंधन सहयोग को फिर से पुनर्जीवित करने की रणनीति के रूप में देखी जा रही है।
✅ नीतीश कुमार की ‘Luv-Kush’ रणनीति की पुनर्स्थापना
नीतीश कुमार की राजनीति की सबसे बड़ी ताकत रही है उनकी Luv-Kush रणनीति, जिसमें कोइरी (कुशवाहा) और कुर्मी जातियों का राजनीतिक गठबंधन प्रमुख है।
लेकिन अब जब राजद ने MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को फिर से मजबूत किया है, नीतीश कुमार को अपना आधार बढ़ाने के लिए अन्य जातियों को साधने की ज़रूरत है – जिसमें सवर्ण, मुस्लिम, और आदिवासी समुदाय प्रमुख हैं।
निष्कर्ष: सामाजिक संतुलन से सियासी बढ़त की तैयारी
नीतीश कुमार की ये नियुक्तियाँ एक बात स्पष्ट करती हैं – वह 2025 के चुनाव से पहले सामाजिक संतुलन के जरिए सियासी बढ़त हासिल करना चाहते हैं। यह रणनीति उन मतदाताओं को लक्षित कर रही है जो या तो भाजपा के पारंपरिक वोटर रहे हैं या राजद के प्रभाव वाले रहे हैं।
यह देखा जाना अभी बाकी है कि क्या यह सोशल इंजीनियरिंग उन्हें एक बार फिर सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा पाएगी या नहीं, लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति एक बार फिर जातीय समीकरणों की ओर लौट आई है।