विश्व का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र — अमेरिका — आज एक बार फिर अपनी अप्रवासन नीतियों को लेकर सवालों के घेरे में आ गया है।
हाल ही में सामने आई रिपोर्ट के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन के दौरान कम से कम तीन अमेरिकी नागरिक बच्चों को, जिनमें से एक गंभीर कैंसर से जूझ रहा था, उनकी माताओं के साथ जबरन देश से बाहर भेज दिया गया।
यह घटना आज भी अमेरिका की आव्रजन नीतियों पर गहरी बहस को जन्म दे रही है, खासकर जब बच्चों के मानवाधिकारों और नागरिकता के सम्मान की बात आती है।
मामला क्या है?
रिपोर्ट के मुताबिक:
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इन बच्चों में से एक को गंभीर स्वास्थ्य समस्या थी (कैंसर), और उसे अमेरिका में लगातार चिकित्सा देखभाल की जरूरत थी।
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लेकिन ट्रम्प प्रशासन की सख्त ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति के तहत, इन बच्चों और उनकी माताओं को निर्वासित कर दिया गया।
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प्रशासन ने नागरिकता के बावजूद यह कार्रवाई की, यह तर्क देते हुए कि माताओं की आव्रजन स्थिति अवैध थी।
वर्तमान स्थिति
बाइडेन प्रशासन ने सत्ता में आने के बाद से आव्रजन नीति में नरमी लाई है।
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कुछ मामलों में ‘ह्यूमैनिटेरियन पैरोल’ और री-एंट्री प्रोग्राम के ज़रिए विस्थापित परिवारों को फिर से अमेरिका लौटने का मौका दिया जा रहा है।
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लेकिन अब भी कई परिवार न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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कानूनी विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि जिन बच्चों को गलत तरीके से निर्वासित किया गया, उन्हें उचित मुआवजा और वापसी का अधिकार मिलना चाहिए।
हाल ही में अमेरिका की अदालतों में इन परिवारों के मुकदमे भी लंबित हैं, और कई एक्टिविस्ट्स ने प्रशासन से अपील की है कि अमेरिकी नागरिक बच्चों के अधिकारों की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
यह मामला क्यों महत्वपूर्ण है?
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नागरिकता का सम्मान: अमेरिका में जन्मे बच्चे स्वतः अमेरिकी नागरिक बनते हैं। उन्हें देश से निकाला जाना संविधान के खिलाफ है।
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मानवाधिकार उल्लंघन: गंभीर बीमारी से जूझ रहे बच्चे को निर्वासित करना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों का उल्लंघन है।
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नीति सुधार की जरूरत: यह मामला दिखाता है कि कैसे कठोर आव्रजन नीतियाँ निर्दोष नागरिकों को भी नुकसान पहुँचा सकती हैं।
निष्कर्ष
ट्रम्प प्रशासन के तहत हुई यह घटना सिर्फ एक गलती नहीं थी, बल्कि यह एक गहरी नीति विफलता का प्रतीक थी।
आज जब अमेरिका खुद को दुनिया का ‘मानवाधिकारों का रक्षक’ कहता है, उसे अपने ही देश के बच्चों के साथ हुए अन्याय को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
क्योंकि नागरिकता कोई तकनीकी औपचारिकता नहीं, बल्कि एक अधिकार है — और हर बच्चे का अधिकार है कि उसका देश उसे सुरक्षित और संरक्षित महसूस कराए।